Prambanan Temple Indonesia 360 Degree Panoramic VR Video | इंडोनेशिया के प्रम्बनन मंदिर का इतिहास

हिंदुत्व की सनातन परम्परा इतनी विशाल, विस्तृत और प्राचीन है कि पूरी दुनिया को सैकड़ों साल से अचरज में डाल रही है। आइये आपको बताते हैं इंडोनेशिया के विश्वविख्यात प्रम्बनन मंदिर के बारे में। प्रम्बनन जावा में एक विशाल हिन्दु मन्दिर-परिसर है। इसका नाम परब्रह्मन् का अपभ्रंश है। इसका निर्माण 850 ईस्वी में हुआ था। यहाँ त्रिदेव का मंदिर है यानी कि यहाँ शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के मंदिर हैं। शिव मन्दिर में तीन और मूर्तियां हैं- दुर्गा, गणेश और अगस्त्य की। शिव, ब्रह्मा, विष्णु के वाहन नन्दी, हंस और गरुण के भी मन्दिर हैं। यहाँ रॉरॉ जोंग्गरंग की मूर्ति है, जिसे लोग यहाँ माँ दुर्गा का रूप मानते हैं। रॉरॉ जोंग्गरंग का अर्थ होता है पतली कुमारी। बहुत लम्बे समय तक यह मन्दिर खण्डहर था लेकिन बाद में इंडोनेशिया की सरकार ने 1953 इसका पुनरोत्थान कराया। उसके बाद अब जावा द्वीप के कई परिवार वापस हिन्दु धर्म को लौट आये हैं।
रॉरॉ जोंग्गरंग मंदिर के पीछे एक कहानी भी बतायी जाती है। बहुत समय पहले की बात है, उस समय जावा में प्रबुबका नाम के राक्षस राज था। उसकी रॉरॉ जोंग्गरंग नाम की खूबसूरत बेटी थी। एक युवक बांडुंग बोन्दोवोसो ने बोको राजा की हत्या कर उसके राज्य पर कब्जा कर लिया था। लेकिन बांडुंग को राजकुमारी रॉरॉ जोंग्गरंग से प्रेम हो गया तो उसने विवाह का प्रस्ताव दिया। राजकुमारी को दिल से यह प्रस्ताव स्वीकार न था। उसने सीधे उसने सीधे मना करने के बजाय बांडुंग के आगे एक एक शर्त रख दी कि उसे एक ही रात में एक हजार मूर्तियां बनानी होंगी। बांडुंग बोन्दोवोसो राज़ी हो गया। जब उसने 999 मूर्तियां बना दी और वह आखिरी मूर्ति पर काम कर रहा था, तो रॉरॉ जोंग्गरंग ने पूर्वी दिशा में जितने भी चावल के खेत थे, उनमें आग लगवा दी। आग की वजह से ऐसा आभास हुआ की भोर हो गई है। मुर्गों ने ये देख बांग देना शुरू कर दिया। भोर होता समझ बांडुंग ने काम छोड़ दिया और उसकी आखिरी मूर्ति अधूरी ही रह गई। लेकिन बाद में जब बांडुंग को सच पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया। उसने रॉरॉ जोंग्गरंग को आखिरी मूर्ति बन जाने का श्राप दे दिया। रॉरॉ जोंग्गरंग की मूर्ति को भगवती दुर्गा का रूप मान पूजा जाता है। इंडोनेशिया के लोग इस मंदिर को जोंग्गरंग से संबंधित होने के कारण इसे रॉरॉ जोंग्गरंग मंदिर के नाम से पुकारते हैं। हिंदू लोगों के लिए प्रम्बनन मंदिर आस्था का केंद्र है।

मूल रूप से प्रम्बनन में कुल 240 मंदिर थे
यहाँ के तीन मुख्य मंदिर त्रिमूर्ति यानी कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित हैं। इन तीनों मंदिर के सामने तीन अन्य मंदिर इन भगवानों की सवारियों अर्थात गरुड़, नंदी और हंस के हैं। त्रिमूर्ति और वाहन मंदिरों की पंक्तियों के बीच उत्तर और दक्षिण की ओर दो अन्य मंदिर हैं। मंदिर परिसर के आंतरिक क्षेत्र में चारों दिशाओं में  4 मुख्य द्वारों से परे चार छोटे मंदिर हैं। परिसर क्षेत्र के चारों कोनों पर चार अन्य मंदिर हैं। फिर 4 संकेंद्रित वर्ग पंक्तियों में सैकड़ों मंदिर हैं। ये मंदिर आंतरिक पंक्ति से लेकर बाहरी पंक्ति में क्रमशः 44, 52, 60 और 68 की संख्या में हैं। हालांकि इन 240 मंदिरों में से काफी नष्ट हो चुके हैं। यहाँ के मंदिर प्राचीन भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना हैं। यहाँ रामायण और भागवत पुराण की कथा उत्कीर्ण की गयी है। ये कथा तीन मुख्य मंदिरों के चारों ओर बेस रिलीफ पैनल और गैलरी में आंतरिक चारदीवारी पर उत्कीर्ण हुए हैं।

सैकड़ों साल बाद हुआ जलाभिषेक
इंडोनेशिया के प्राचीन प्रम्बनन मंदिर में 1163 सालों के बाद सैकड़ों हिन्दुओं ने 12 नवंबर, 2019 को मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया। यहाँ यह जान लेना ज़रूरी है कि इंडोनेशिया केवल मुस्लिम बहुल देश ही नहीं है, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी यही रहती है। मूलतः शिवगृह कहा जाने वाला प्रम्बनन मंदिर इंडोनेशिया के तीन प्रांतों स्लेमान, योग्यकर्ता और मध्य जावा के क्लाटेन के बीच में स्थित है। अभिषेक का आयोजन करने वाली समिति के सदस्य मदे अस्त्र तनया के अनुसार, उन्हें यहाँ एक शिलालेख मिला था, जिसमें इस मंदिर के उद्घाटन की तारीख 12 नवंबर, 856 ईस्वी दर्ज थी। उसमें यह भी उल्लिखित था कि मंदिर की स्थापना के समय भी ऐसा ही अभिषेक और पूजा पाठ हुआ था। उसके बाद हिन्दुओं ने इस पूजा की तैयारी शुरू की। इस अनुष्ठान का आयोजन रकाई पिकतन द्यः सेलाडु द्वारा इस भव्य मंदिर की स्थापना का उत्सव मनाने के लिए हुआ था। उस समय के हिन्दू ‘तावुर अगुंग’ नाम का एक अनुष्ठान करते थे, वे मानते थे कि इस अनुष्ठान से मनुष्यों के साथ समस्त ब्रह्माण्ड पवित्र हो जाता है।

यहाँ हुई इस पूजा में पहली पूजा मातुर पिउनिंग नामक थी, जिसमें आगे के कर्मकांडों के लिए पूर्वजों से अनुमति माँगी जाती है। यह भारत में मृत पितरों के स्मरण जैसा है। इसके बाद म्रापेन नामक अग्नि प्रज्ज्वलित की गई और 11 पवित्र कुँओं का पानी लाकर पास के बोको मंदिर से प्रम्बनन देवालय तक छिड़काव हुआ। उसके बाद पूजा पाठ और भारत की ही तरह मंदिरों की प्रदक्षिणा भी की गई। पूजा के बाद शिलालेख के अनुसार मनुसुक सिमा नामक एक और प्रथा के अनुसार शिवगृह देवालय के पारम्परिक नृत्य का भी आयोजन हुआ, जिसमें प्रम्बनन मंदिर के पुनर्निर्माण से जुड़ी गाथाओं का वर्णन होता है।

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Jl. Raya Solo – Yogyakarta No.16,
Kranggan, Bokoharjo, Kec. Prambanan,
Kabupaten Sleman,
Daerah Istimewa Yogyakarta 55571, Indonesia

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